JPSC 6th Combined Civil Service Recruitment 2016-17

Considering Competition, Uncertainties, Corruption, Vacancies, Syllabus, Delays,etc which is tougher to crack 

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 FOR BPSC http://www.prabhatkhabar.com/news/patna/bihar-bpsc-pt-mains-exams-calendar/986093.html

koi khabar Hai revised result ka  .......?



itna sannata kyun hai bhai?

 6th JPSC cancel hone ki koi khabar nahi hai.

Mainswa ke syllabus hau ke pahad hau bhaiwan log. ke banailo hau tel nikale khatir. upar se angreji le leliyo ha. harek subjectwa mein graduation karaye ke jpsc ke irada hau. Lagau hau doosar saalo tak syllabuswa cover nay hotau. Koi upay batau tunh sab  .

WBCS 2017 Mains (15, 16, 17 19 ) july ko hai..  koi hai JH se jo dega?

Prelims k marks release kiya jpsc ne?

22nd may ka tckt hai mera delhi to ranchi ka jpsc mains wala .. par ab cancel kara hi lena chahiye.. confirm seat cancel karana pad raha hai.. upsc prelims nahi hota to ek round fir ghoom aate !!! :-)

kisi ne rti kiya hai JPSC mains se related? Kisi k paas kuch information hai mains k tentative dates k baare mein?

really found this article worth reading. So, just thought of sharing it. यह लेख किसी व्यक्ति विशेष नही, बल्कि उस जिजीविसा को सलाम करता है, उस “लगन, लक्ष के प्रति संपूर्ण समर्पण, और आगा पीछा ना देखते-सोचते हुए खुद को झोंक देने की शक्ति से प्रेरणा लेना और देना चाहता है. यह जिजीविसा किसी मे भी हो सकती है. क्या आपमे है?” जो लोग हिन्दी नही समझ सकते, उनसे क्षमा चाहती हूँ. लेकिन आशा है की सिविल सर्वेंट बनने की इस यात्रा मे थोड़ी बहुत हिन्दी आपने सीखी होगी, या फिर आस पास हिन्दी बोलने वाले ऐसे मित्र बनाए होंगे, उन मित्रों से मदद लेकर यह लेख पढ़ पाएँगे. मैं कोई बहुत बड़ी फिलोसॉफिकल बातें करना नही चाहती. पहली इसलिए क्यूंकी इस लेख को पढ़ने वाला जो तबका यहाँ है वो खुद ही इतना मेच्यूर, इतना Knowledgable और आत्मविश्वास से लदा फादा है की उसको कुछ और ज्ञान देने की कोशिश इर्रेलवेंट भी है और उनकी क्षमताओं का निरादर भी. और एक pluralist शिक्षक होने के नाते हर एक व्यक्ति, हर एक बड़ा और छोटा व्यक्ति मेरे सिर्फ़ और सिर्फ़ आदर के योग्य है. दूसरा इसलिए कि मैं किताबी बातें कहके आपका वक्त बर्बाद नही करना चाहती. वैसी किताबें आप सबने, मेरी तरह, बहुत पढ़ी होंगी और शायद बोर भी हुए होंगे. इसलिए मैं आप सबके साथ अपना एक निजी अनुभव बाँटना चाहूँगी जिसने मुझे मेरे जीवन मे काफ़ी प्रेरणा दी है. शायद आपमे से कुछ को ही सही यह कहानी प्रेरणा दे पाएगी, ऐसी आशा है. आज मैं जो कुछ कहूँगी वो मेरा सच है. मेरा सच इसलिए नही की मेरे बारे मे है. ये मेरा सच इसलिए है क्यूंकी ये ऐसे व्यक्ति के बारे मे है जिनसे मिलने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ. हालाँकि थी तो मैं उनकी मॅनेजर, लेकिन मैने बहुत, बहुत कुछ उनसे सीखा. शायद आप भी उनकी पर्सनॅलिटी मे कुछ सीखने लायक देख पाएँ. यह व्यक्ति एक वो व्यक्ति था जो की शायद हिन्दुस्तान का पहला, या फिलहाल एकमात्र, कंप्यूटर पर काम करने वाला deaf-blind है. शायद आपमे से कई deaf-blindness को या तो समझते नही होंगे या सिर्फ़ उसकी परिभाषा जानते होंगे. यह व्यक्ति देख नही सकता था, सुन नही सकता था और बोल नही सकता था. यक़ीनन उसका जीवन कठिन था. अब ये व्यक्ति करे तो करे क्या! पढ़ना चाहता है पर देख नही सकता. ना किताबें. ना ब्लॅकबोर्ड. शिक्षक को सुनना चाहता है पर सुन नही सकता. जो, जो बातें मन मे उमड़ती हैं उनको बताके दोस्त बनाना चाहता है पर बोल भी नही सकता. “Normative” भाषा मे कहें तो पूरी तरह खुद के अंदर की दुनिया मे सिमटा हुआ. और बाहरी दुनिया से जुड़ने के आँख, कान और शब्द जैसे लगभग सभी connections से कटा हुआ. इस व्यक्ति ने पढ़ाई पूरी की. sign language के द्वारा. साइन लॅंग्वेज वैसे तो हाथो से शब्द बनाकर बातचीत करने को कहते हैं. पर जब बोलने वाला देख भी नही सकता तब ये प्रक्रिया थोड़ी मुश्किल हो जाती है. क्यूंकी तब tactile method इस्तेमाल करना पड़ता है. एक एक शब्द हाथों से शिक्षक बच्चे के हाथों पर लिखता है और बच्चा ऐसे ही पूरी वर्णमाला इत्यादि सीखता है. बाद मे साइन लॅंग्वेज भी ऐसे ही सीखता है. जब मैं इस व्यक्ति से पहली बार मिली तो मन मे सवाल आया, “आख़िर इस व्यक्ति को पढ़ाने का सोचा भी किसने होगा?” कितने लोग हँसे होंगे उस शिक्षक पर. या शायद शिक्षक ने भी कई बार अपने आप को तौला होगा की क्या ये मैं वास्तव मे कर पाऊँगा. क्यूंकी मैं खुद एक शिक्षक रह चुकी थी और मेरा संयम कभी भी “कमजोर” बच्चों के साथ बहुत अच्छा नही रहा. मैं क्रीम बच्चों को लेके क्रीम प्रोड्यूस कर पायी थी अब तक. चूँकि मैं खुद बहुत ब्रिलियेंट स्टूडेंट रही थी, मेरा संयम “कमजोर” बच्चों के साथ जबाब दे जाता था. और खुद को इसके लिए बहुत दोषी भी पाती रही थी, इसलिए जब इस व्यक्ति को पहली बार देखा तो उसके शिक्षक के संयम, perseverance की ताक़त का एहसास पहली बार हुआ मुझे. इस व्यक्ति के शिक्षक ने हिम्मत की. और इस व्यक्ति को पढ़ाया. क्या आप सोच सकते हैं कितने दिन लगे होंगे पूरी तरह से इस व्यक्ति को पढ़ाने मे? एक साल? दो साल? चलो तीन साल? जी नही. इस शिक्षक ने एक, दो, तीन, चार नही, पाँच नही दस नही, बल्कि पंद्रह साल पढ़ाया इस बच्चे को. हिम्मत नही हारी. इस बच्चे की सीखने की लगन पर विश्वास नही खोया. अपने काम के प्रति ईमानदारी नही छोड़ी. जो एक दयित्व खुद को दिया, उसको पूरा करने मे अपनी पूरी शक्ति झोक दी. जब मैं पहली बार इस बच्चे से मिली तो मैने ये भी सोचा की आख़िर ये क्यूँ पढ़ना चाहता होगा? हम सब पढ़ते हैं, परीक्षा की तैयारी करते हैं क्यूंकी हम सब जीवन मे कुछ चीज़ें पाना चाहते हैं. कुछ लोग मेटीरियल चीज़े चाहते हैं: गाड़ी, घर, प्रॉपर्टी, अच्छी शादी इत्यादि; और कुछ, इमेटीरियल स्टेटस, यश, इज़्ज़त, नाम, इत्यादि. इस व्यक्ति के पास शायद ऐसा option बहुत कम था अपनी विकलांगता की वजह से. हिन्दुस्तान आज भी एक ऐसा देश है जहाँ विकलांगता को “जीती-जागती मौत” जैसे adjectives से नवाजा जाता है और नौकरी, शादी, प्रॉपर्टी क्रियेशन जैसे सब्जेक्ट-पोज़िशन मे हम विकलांग लोगों को सोच नही पाते (और यह बहुत दुखद बात है!) ये सच्चाई भले ही वो बोल ना पाए, पर एक युवा मन समझता तो होगी ही हम सब की तरह. फिर भी वो क्यूँ पढ़ना चाहता था? क्यूँ आगे बढ़ना चाहता था? दृष्टि नही है. सुनने की शक्ति नही है. बोल नही सकता. आख़िर ये क्यूँ ही सपने देखना चाहता था? कइयों ने शायद उसको बोला होगा की अर्रे भाई क्या तुम लाट गवर्नर बन जाओगे! जब हिन्दुस्तान मे विकलांग लोगों के लिए उतने करियर options ही नही हैं तो बिना किसी अंतिम प्राइज़ के तुम क्यूँ रेस लगाना चाहते हो! कइयों ने उसको अकेला छोड़ दिया होगा. परिवार ने भी शायद बहुत साथ नही दिया होगा. क्या वो भी कभी कभार डरा होगा? पता नही. ये सब उसकी पिछली ज़िंदगी की बातें थी जो मैं किसी तरह नही जान सकती थी. लेकिन जो एक बात हर दिन मेरे जेहन मे आती थी जब भी मैं उसको कंप्यूटर पर खटाखट काम करते देखती थी. वह थी उसका अपने सपने मे विश्वास, अपने पैरों पर खड़े होने की लगन, कुछ नया सीखने की जलती हुई इच्छा, एक, दो साल नही, बल्कि पंद्रह साल तक बार बार ग़लती करते हुए, डाँट खाते हुए, दूसरे दिन फिर से सीखने जाते हुए ना टूटने वाला प्रबल आत्मविश्वास aur perseverance. जबकि end goal बहुत ज़्यादा visible नही था. आख़िर यह सब तैयारी करके मिलेगा क्या ये बहुत vague था. और पंद्रह साल के perseverance के बाद जब ये व्यक्ति आज कंप्यूटर पर काम करता है. (कुछ समाधानों का इस्तेमाल करके. जैसे ब्रेल डिसप्ले इत्यादि.) परिवार से दूर, बाहरी दुनिया से जुड़ने के आँख, कान और शब्द जैसे लगभग सभी connections से कटा हुआ व्यक्ति अकेला, आत्मनिर्भर रहता है. सड़क पार करता है. SMS/Facebook करता है. फ़िल्मे देखता है. बिर्यानी खाने जाता है. दोस्त बनाता है. प्रेम करता है. नौकरी करता है. तो ये व्यक्ति उस शिक्षक के लगन, संयम और दृढ़ निस्चय का जीता जागता प्रमाण पत्र बन जाता है. और साथ ही साथ हममे से कई उन व्यक्तियों को प्रेरित कर जाता है, जो की अपने उपर अविश्वास कर बैठते हैं कुछ एकाध हार से घबरा कर. लोगों की “प्रॅक्टिकल”, “रियलिस्ट” बातों से डरकर “BACK UP” की चिंता करने लग जाते हैं. अंतिम प्राइज़ इतना महत्वपूर्ण हो उठता है की प्रयास की सार्थकता ही भूल जाते हैं. सफलता या असफलता यात्रा के अंतिम चरण है. निश्चय ही, कठिन प्रयास के बाद, सफलता बहुत आनंद देती है, और असफलता सुइयों सी चुभती है. पर किसी भी लक्ष की तैयारी एक PROCESS है. और ध्यान इस प्रोसेस को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए. हर दिन बेहतर से बेहतर करते हुए, हिम्मत ना खोते हुए, लोगों से डरते ना हुए, इस अंतिम चरण, अंतिम दिन को MANUFACTURE करने पर होना चाहिए क्या हममे से हर एक के पास अपने लक्ष, अपने सपने, चाहे वो whimsical ही क्यूँ ना हो, के प्रति वैसी कठिन साधना करने की इच्छा है? मैं ये नही कह सकती की भाई प्रॅक्टिकल मत बनो. लेकिन इस व्यक्ति को देखने के बाद मैने ये सीखा की मेरा एग्ज़िट पॉइंट सिर्फ़ मैं, सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं निर्धारित करूँगी. मेरा डर नही. लोगों के ताने नही की भाई 30 साल हो गये, अब तक unemployed ही हो?! विकलांगता को लेके कई लड़ाइयाँ लड़ी जा रही हैं. और उन सबकी सबसे पहली माँग ये है की विकलांगता को किसी “आदर्श”/”दिव्य”/दर्दनाक/ बदक़िस्मती की तरह नही बल्कि जैसे वो है, वैसे ही प्रस्तुत किया जाए. उनकी अपनी परेशानियों हैं जिन्हे ROSEY बनाने की ज़रूरत नही है. ज़रूरत है इंक्लूसिव बनने की. सड़क से लेकर website बनाते वक्त यह सोचने की कि मेरी यह website, सड़क या मेरा यह मकान क्या ज़्यादा से ज़्यादा विकलांगताओं के लिए इंक्लूसिव है? क्या यहाँ एक वीलचेर प्रयोग करने वाला व्यक्ति या सेरेब्रल पॉल्ज़ी वाला व्यक्ति आराम से आ-जा सकता है? क्या यहाँ speech-recognition यूज़र, स्क्रीन reader यूज़र आराम से पढ़ सकता है? लिख सकता है? ज़रूरत है दया नही, बड़े बड़े बड़ाईयों के जयकारे नही, बल्कि एक आम आदमी के “बराबर” इज़्ज़त देने की. ये लेख उस विचार से पूरी तरह सहमति रखता है. और किसी भी प्रकार यह नही कहना चाहता की “जब वो विकलांग होकर ये कर सकता/ सकती है, तो आप और मैं जैसे “नॉर्मल लोग” क्यूँ नही?! आख़िर, हम सब एक temporarily-abled बॉडीस ही तो हैं. विकलांगता कोई सेपरेट केटेगरी नही है.) यह लेख किसी व्यक्ति विशेष नही, बल्कि उस जिजीविसा को सलाम करता है, उस लगन, लक्ष के प्रति संपूर्ण समर्पण, और आगा पीछा ना देखते-सोचते हुए खुद को झोंक देने की शक्ति से प्रेरणा लेना और देना चाहता है. यह जिजीविसा किसी मे भी हो सकती है. क्या आपमे है?

Padhe mein mann nay lag rahlo hau. mainswa ke datewa bagar target in sight nay hau. ki karyo. 

  • Quit Jpsc preparation
  • Try to slog like a dog with hope against hope
  • Protest through some forums but not start prep until mains dates are announced
  • Relax now and start prep when dates are announced

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kab aayega extended result  aur kab hoga mains? tired of wating


Abey mere ghar electricity 10 ghanta bhi Ni reh raha Hai... Ra'gobar' das Kya Kar raha Hai Sala... Sala electricity board 75% privatize karne ke baad aisa haal Hai... 😤😤😤

Looks like jpsc me b case ki wajah se jpsc 2017 bhi delayed honjaega like jssc cgsce 17.

5th jpsc ka final cut off kya tha for different posts? 

5th Pt result shyd 2014 Feb mein aaya tha aur mains Jun 2015 mein hua. So,with the same analogy 6th ka mains agle saal Jun. Any thoughts. 

Jpsc Mar gya h Kya Kuch update ...Purana wlaa ya naya is saal me kraega ki ni

 Anyone applied for BIT Sindri asst professor post.if applied plz post ur gate marks and mtech college 

Anyone applied for BIT Sindri asst professor post.if applied plz post ur gate marks and mtech college.